रविवार, 10 जनवरी 2010

मृत्यु




मृत्यु के बारे में उनके विचार श्पष्ट थे । उन्होंने मृत्यु को एक सहज अलविदा जैसा एक भाग कहा है । खुद को हॉस्पिटल में अपने मृत्यु का खेल आया था वहा एक चिठ्ठी लिख के रख दी थी। कहता मुझे बड़े प्यार से विदे देनी होगी ।३मार्च १९८६ को उनका देहांत हुआ था। उन्होंने संस्कृत की सेवा में बड़ा योगदान दिया था। वादोदारामे संस्कृत विद्वाद परिषद् में कार्यरत थे। उनको दी हुई शोकांजलि प्रस्तुत है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें