शामलाजी भगवन में अटूट श्रध्दा थी । उनका हर एकादशी वहा चलके जाना । और भजनों की रचना करते रहना। यह भजन आज भी उनके चहक गुण गुना लेते है !!
कुटुंब की प्रार्थना बड़ी मधुर है
चालु पल सम्भाल जीवननी ... यह उनका अंतिम समय में रचना थी !!
सच्चाई का सन्मान परलोक में तो होता ही है । कवि दलपत की यह उनके संग्रह में मिली
सत्य तो यही है।
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