सोमवार, 4 जनवरी 2010

जीवन जिम्मेदारिया










जैसे ही देश आजाद हुआ उनकी राज्ज्योतिश की जगह छूती । उन्हें आना पड़ा वड़ोदरा । उन्होंने ने जीवन में सांसारिक कष्ट सतत चालू रहा ! बचपन में पिता चल बसे । अपने चाचा पुरसोत्तम वो भी चल बसे । उनके पुत्रो भवानी,रमनलाल,(रमनलाल ने आगे चल कर बारिस्टर बने। और एक सामान्य भारतीय भी प्रेसिदंत का मुकाबला कर सकता है यह दुनिया को दिखने के लिए भारतीय प्रमुख की उम्मीद वारी की थी !)चंद्रकांत,अनंदा,मंगुबेन के साथ अपने भाई परमानन्द बहन मणिबेन सबके बड़े भाई होने से वैसे ही बापा का स्थान अहि गया था। उनकी प्रथम पत्नी तो शुरू में चल बसी जिनका नाम था गिरजा। जो कूद उसी समय में उनके साथ ज्योतिष शिख्ती थी ! दूसरी पत्नी रतिबा डो बच्ची को छोड़ के चल बसी इन्ही चीजों ने उनमे वैराग्य भावना कर दी थी। किन्तु कुदरत को कुछ और मंजूर था तो तीसरी शादी करनी पड़ी क्यों की माँ की बड़ी इच्छा थी !उनका नाम है मंगला गौरी !



वड़ोदरा में माडवी के पास आये । उस समय के संस्कृत विद्यालय ऍम अस युनिवेर्सिटी के प्रिंसिपल श्री हरी प्रसाद मेहता ने उनके कार्यालय देव ज्योतिशालय का ७द्घतन किया था। आज तो मांडवी बड़ा बस्ती वाला बन गया है ।



उनके संतान मुक्ता ,रमा ,जीतेन्द्र, राजेंद्र,निरंजना ,ज्योति ,शर्मिष्ठा ,किरीट कुमार आज भी अपने कार्यो में व्यस्त है ।


किरीट भाई की जनोई के समय का फोटो यहाँ रख्खा है .

उनके जीवन से एक बात रहती है कौटुम्बिक जिम्मेदारिया इन्सान की बाते खुलके बहर आने में समय ले लेती है










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