गुरुवार, 18 नवंबर 2010

यत्र भूमा तत्र विश्रांति


उनके गुरु त्रिकम लाल जी  जो पाटण में थे । उनके पास से भूमा विद्या की बात पकड़ ली थी ! और सतत भूमा विद्या के बारे में सोचते रहते थे । लेकिन एक कॉमन संसारी की तरह ही जीते थे । लेकिन इसी विषय में बड़े पंडितो के सिवा किसका काम ना था इसी लिए ज्यादातर इसकी चर्चा में नहीं दिखाई देते थे । मिथ्या वाद विवाद से दूर रहते थे । किन्तु उनके काव्य एवं भजनों में यह बात छुपी नहीं रहती !! यह बात नेट पर एस्ट्रोवेबइण्डिया  में बताई है ।

એક જોકર નામ નું મુવી છે.તેમાં ગામડા ના માણસો માં એક માણસ ને એલિયન ની ભાષા આવડતી હોય છે.જે ગાંડા જેવી ચેષ્ટા ના કારણે તે સામાન્ય માણસ માં ગણાતો હોય છે.મુવી ના અંતે જ્યારે સાચો એલિયન આવે છે ત્યારે પુરા ગામ ને વાર્તાલાપ કરવા મા આ વ્યક્તિ જ કામ માં લાગે છે.
બસ આવું જ કઈ ભૂમા વિદ્યા નું છે. યાજ્ઞવલ્કય ની વાતો માં સમજાય છે.સહજ સમાધિ !! મારા પિતાજી એ તેમના છેલ્લા દિવસો માં તેમના ભજનો ત્રિકમ તત્વ વિલાસ આ બધું જ સાંભર્યું . તેમના ભજન કાવ્ય માં અવલંબન વિણ ચિત્ત અચેતન થયું સહજ પ્રયાસે...એ પંક્તિ ઘણી જ ઉંચી છે.બસ અહીં ની ખૂબી એવી છે જયાં સુધી એલિયન ન આવે ત્યાં સુધી ની દશા કેવી!! તેથી જ સામાન્ય સંસારી માફક જીવી લે તો જ સમય પસાર થાય. નરસિંહ મહેતા અને અખા ને કોઈ કોઈ જ સમજે છે. ના સમજ ને તે સમજવા ની જરૂર જણાઇ જ નથી તેથી તેઓ પર પ્રેમ કે તિરસ્કાર નો પ્રશ્ન રહેતો જ નથી.

मुध्रणेश्वर  महादेव 


उन्होंने जादर उत्तर गुजरात में शिवमंदिर है जो मुध्रने श्वर अर्थात मूर्धनीश्वर  कहेलाते है ।उनकी स्तुति रचना की थी जो संसकृत  विद्यालय एम् एस यूनिवर्सिटी के अंक सुरभारती में प्रसिध्ध हुई थी ।

भूमा विद्या में संसार में एक सामान्य सांसारिक जैसा ही जीवन होते हुए जीवात्मा सतत परमात्म चिंतन में जुडा हुआ रहता है ! अतः उसको पहचानना कठिन है ! क्योकि वो सब के जैसा ही संसारी है !! खूबी सिर्फ इतनी है की उस पर ए हुए दुःख सुख को सहज ले लेता है | उनके काव्य में
"अवलंबन विण चित्त अचेतन थयु सहज प्रयासे "
यहाँ कोई भी अवलंबन लिए बिना सहजता से चित्त को अचेतन कर लेने की खूबी भरी बात है !! यही तो है भूमा विद्या का रहस्य !!!यह भजन में उनकी अन्दर की भावना स्पष्ट होती है !! पाटन उत्तर गुजरात में है .। उनके भी शिष्य थे भाईशंकर महाराज कुकर वाडा गाव में |

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

वड़ोदरा में
















वड़ोदरा में उनको आना हुआ 1949 देश की आज़ादी हुई उसके करीब से। राज ज्योतिष थे उत्तर गुजरात के। अब यहाँ पंडितो में उन्होंने संस्कृत विद्वत सभा में कार्य में रत हुए । साथ साथ ज्योतिष की सेवा रही । उनके साथ महाशंकर भाई हरिशंकर जी उनके भाई परमानन्द भवानी शंकर सब ने मिलके शुरू किया था व्यास एंड कंपनी नामका व्यापर जिसमे दवाई यो एवं कागज खाने की चीजों का व्यापर भी था। किन्तु यह थोड़े साल चला ! अध्यात्मिक कार्य तो था ही। बोलुन्द्र में किये हुए अतिरुद्र में जो पूजा किया हुआ शिव लिंग था वह लेके आ ये थे। शरु में ભૂતડી ઝાંપા के पास देव ज्योतिशालय था । फिर वहा से शामल बेचार की पोल में । उनका नाम सुनके उनके वहा राज्कपोर और नर्गिस भी ज्योतिष दिखाने ए थे। यही सम्बन्ध से वो चेम्बूर भी पृथ्वीराज के बुलवाने पर गए थे। और उनका फोरकास्टिंग सही हुआ था । इसी बातो से उनकी विशिष्टता और बढ़ी थी और भ्रुगुसम्हिता का अधर ले कर पुर जिंदगी का फल लिखने की उनकी पद्धति ने बड़ा नाम बनाया था । करीबी १९६५ देव ज्योतिशालय को लेके ए थे बा रा न पूरा में ! फिर वहा से हरनी रोड पर !यही उनकी यात्रा ज्योतिष कार्यालय की रही ! यही काम उनके पुत्र राजेन्द्रप्रसाद सम्हाल रहे है। उनके पुत्र किरीट भा इ भी कर्मकांड एवं ज्योतिष के काम में है । उनकी रत्नपरीक्षा के गुण ने पुत्र राकेश को जेमोलोजी में खीचा है इस तरह यह सेवा जरी रही है । आज युनिवेर्सिटी ग्रांट कमीशन का ७३ नंबर का विषय ज्योतिष बना रहा है ।

ज्योतिष के साथ कर्मकांड पूजा मै कई बड़े काम हुए थे.जिनमे पशाभई ट्रेक्टर का प्रारंभ पूजा उन्होंने की थी जो आज हिंदुस्तान ट्रक्टर जैसी कंपनी है ।
यही था उनका ज्योतिष के प्रति दृष्टिकोण !!
देवज्योतिषालय को वड़ोदरा में लाये तब मिले पहले संस्कृत विद्यालय के प्रिंसिपल हरिप्रसाद महेता . जिनको  आगे चलके राष्ट्रपति से अवोर्ड मिला था उत्तम शिक्षक का !! उन्हीके हाथो से उद्घाटन हुआ वड़ोदरा में | यहाँ एक तस्वीर है जिसमे १९७१ में फॅमिली फोटो है |
मुझे  बिलकुल याद है उनमे श्रध्धा रखने वाले बहोत थे !! जो उनको गुरु मानते थे।  लेकिन गुरु ગાદી जैसा ન किया उन्होंने।  उनके आरोग्य के प्रश्न के कारण उनके एक शिष्य लक्मीनाथ  तिवारीजी  ने हम  बच्चो को बिठा कर उनके बदल भगवत सप्ताह किया था !यही उनके प्रति सद्भावनका प्रतिक है !!

वड़ोदरा   नाम पहेले  बड़ोदा  था।  अंग्रेजो ने बरोडा  कर दिया  था। पहले आये थे भतडी  ज़ाम्पा। फिर वहासे कार्य ले किया मांडवी के पास. विस्मणीय के खांचे मे. फिर आगे जाके चम्पाके पेड़ के पास विठ्ठल मंदिर के पीछे रहे देव ज्योतिषालय. उन दिनों में उनके पास आये  थे राजकपूर   नर्गिस !! ऐसे उनकी प्रसिद्धि बड़ी थी।
तीन मज़ले का मकान किराये पे था।  यहाँ से बरान पूरा  और उसके बाद हरणी  रोड पर कार्यालय लाया गया था।  जो आज राजेन्द्रप्रसाद व्यास अवं उनकी पुत्री जोषि  धारा  चला रहे है ! આજે કાર્યાલય ગેંડા સર્કલ પાસે ,ટ્રાયી કલર હોસ્પિટલ પાસે છે.

संस्कृत विद्वत सभा अवं पंडितो में बड़ा मान था  . कर्मकांड विषय में उनकी मास्टरी थी !
Manglaben જયશ્રી  हंसा  ભાવના  बहु के साथ 
વડોદરામાં આવ્યા ત્યારે દેશના ભાગલા થયેલા તેની તેમના પર ઘણી અસર હતી .તેથી સિંધી ભાઈ બહેનો પાસે થી ફી ન હતા લેતા. તેનું તેમને બોર્ડ ચિત્રવેલું.અમે નિરઆશ્રિત ભાઈ બહેનો પાસેથી ફી લેતા નથી.ઘણા સમય સુધી આ બોર્ડ હતું.જે તેમના એક અંગત ગ્રાહક પરમાનંદ લાખની એ કહ્યું કે હવે સિંધી ઓ સુખી છે હવે તો દક્ષિણા લો.એમ કહી બોર્ડ ખસેડી દીધેલ


પરમાનંદ લાખાણી




मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

शिव शिव


उनका जन्म हुआ तब नर सिंह दादा ने शिव की उपासना की थी । इसीलिए उनका नाम शिवशंकर रख्खा था ! वैसे तो उनकी जन्म राशी सिंह थी ! उन्हों ने खुद ने भी गाव के शिवालय में सतत धारा कर के अतिरुद्र करवाया था । कुटुंब में सबको वो दत्तबावनी शिवमहिम्न स्तोत्र एवं विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र सतत करवाते थे ! वो मानते थे की हम सब कोई अदृश्य शक्ति के निचे काम कर रहे है । उसकी मर्जी को मुनासिब समज कर आनंद से अपना कर्म करते रहो ।
 देव पंचायत की पूजा का महत्व कहते थे. नाम अक्षरों से   किसी  पंचायत से लाभ होगा यह निर्णय पर महत्व देते थे .

शनिवार, 16 जनवरी 2010

अंतिम चर्चा

उनके साथ हुई अध्यात्म चर्चा में प्रकाश का महत्त्व रहा है, जो उन्हें अपने अंत कालमें देखा हो ऐसा लगता है । ये सब देखते आश्चर्य मुद्रा में हंसते हुए विस्मय युक्ता कोई बहोत बड़े विराट प्रकाश तेज को देखे हुए बावले से हुए थे !भूमा विद्या की यही पह चन होगी। परमात्म तत्त्व का अंश मात्रही आत्मा तत्त्व है ! जो इधर उधर सर्वत्र ज्यादा काम मात्र में बिखरा है !जैसे अज्ञानके महासागर में कोई ज्ञान !अन्धकार में एक प्रकाश बूंद !और यह बूंद का फ़ैल जाना ! जेइसे एक पानी भरे ग्लास में एक स्याही की बूंद कैसे फ़ैल जाती है !वैसे ही आत्मा का फ़ैल जाना है ! जैसे पेड़ की डाल ! भगवन बुध्ध का जन्मा हुआ तब वो सिध्धार्थ थे । उनके युवा वस्था के बाद हुए ज्ञान ने उन्हें बुध्ध बनाया था । जब उनका जन्म हुआ तो रजा ने ज्योतिषी पंडित को बुलाया और उनकी पत्रिका सुनी। पत्रिका को पढ़ते पढ़ते पंडित बड़ा हर्ष में आ गया । वो बोला रजा यह कोई सामान्य बालक नहीं है यह तो बड़ा चक्रवर्ती होगा या तो भगवन स्वरूप बनेगा ! बहोत खुश होते यह वर्णन करते और यह कहते कहते थोड़ी देर में पंडित रोने लगा !किन्तु थोड़े समय बाद पंडित का पुत्र वहा आया । पंडित ने अपने पुत्र को देखा तो फिरसे खुश हो कर वर्णन करने लगा राजा तुम्हारा यह पुत्र प्रत्यक्ष संसार में भागवत स्वरूप बड़ा होगा तब बनेगा ! राजा ने खुश होकर उसे दक्सिना दी जो लेकर अपने पुत्रके साथ पंडित खुश होता हुआ अपने घर गया !! किन्तु इसी बात से चतुर राजा परेशां हुआ वह सोचता रहा पंडित जन्मकुंडली देख पंडित पहले हंसा फिर रोया फिर हंसा इसीमे जरुर कोई संदेह होगा !! इसी बात से चिंतित राजा ने रत को फिर पंडित को बुलाया । पंडित दर गया बोला मुजसे कुछ भूल हुई है क्या ! किन्तु राजा ने सांत्वना दी और कहा ऐसी कोई बात नहीं है किन्तु मुझे तुम्हारी जन्मकुंडली देखते समय की हुई चेष्टा से शंका युक्त बनाया है क्योकि तुम पहले खुश होकर बोलते थे फिर आंख में आंसू लाये फिर तम्हारे पुत्र के आने बाद तुम ख़ुशी से वर्णन करने लगे यह बात से मेरा चतुर मन संदेह युक्ता हुआ है की ऐसा क्या है !!! यह बात सुन कर पंडित ने साँस ली और हंस पड़ा अरे इतनी सी बात है तो सुनो ! पंडित बोला " सुनो ! जब मै जन्मकुंडली देखता था तब मैंने देखा की यह बालक बड़ा हो कर एक भागड़ स्वरूप बुध्ध बनेगा !मै खुश हो गया ओहो भागन ने अवतार लिया !!किन्तु मै यह सोचने लगा की यह पहले तो सामान्य मनुष्य रहेगा और जब बुध्ध बनेगा तब तक तो मै मर जाऊंगा !!ओह !! मुझे इस जन्म में भगवान के दर्शन नहीं होंगे !! यह सोचते सोचते मेरी अन्खोमे पानी आ गया किन्तु जब मेरा पुत्र वहा आया तो उसे देखकर मुझे एक शांति मिली चलो मुझे नहीं तो मेरे पुत्र को तो भगवन के दर्शन होंगे वो मुजेही हुए क्योकि यही तो मेरा अंग है !!" बस इस बात को समज लेना है !!एक से होते है २ अमिबो सैल ! उनकी वृध्धि होती रहती है !!प्राणी भी एक से अनेक बनते रहते है ! क्या यह तरीका है आत्मा तत्व का फैलना !!ये पेड़ पौधे सभी हमें बहोत कुछ कह रहे रहे है हमारे में छुपे कई प्रश्नों के उत्तर !!यह विज्ञानं या अज्ञान की बात नहीं है केवल है समज !!!


रविवार, 10 जनवरी 2010

आनंद करो !!




मंत्र शक्ति की विशिष्टता को कहते रहते थे।


उनके काम शास्त्री य रहे है । कर्मकांड विषय में शास्त्रमे अटूट श्रध्दा थी । और किसीके जप मंत्र बाकि रहे हो तो रातको जपते रहते थे और पुरे होने के सिवाय निद्रा नहीं लेते थे ! वो कहते थे कर्म में चोरी मत करो । यही उनकी शिख रही है। बोलुन्द्र में अपने वहा शिष्यों को पढ़ते थे। यह उन्होंने वड़ोदरा में भी जरी रख्खा था । वो कहते थे । पढ़ना और पढ़ना यह काम तो ब्रह्मिन का है ही ।







अकिंचित ब्रह्मनात्वं यह उनकी खूबी थी। डोंगरे महाराज के समकालीन एवं प्रन्षक थे । वो कहते थे सरलता एवं सामान्य मानव बनके जीना कठिन है लेकिन सही है। व्यथ प्रसिध्धि से दूर रहते थे। वो कहते थे प्रतिष्ठा सुवर की विष्ठा है !
उन्होंने एक बोर्ड लगाके रख्खा था प्रभु पर श्रध्दा रख्नर कदापि निराश थातो नथी । बस इसी चीज़ पर अड़े रहते थे वो । क्रोध को जितना जरुरी है । और कहते थे चलो मुझे क्रोधित करो मै तुम्हे इनाम दू !! मतलब सतत आनंद में रहना उसे जरुरी मानते थे। और अंतिम उपदेश भी कहा आनंद करो।
जीवन में एक उपदेश ये रहा है की हम मनुष्य है हमें मनुष्य  से आगे बढ़ कर देव योनि में जाना है !! इसीलिए उनके एक भजन में लिखा है --तू देव बन सतत देव की सेवा कर ते करते और अच्छे दैवी गुणों को बढ़ता चल !! यही गुण की दौलत और बढ़ती ही जाएँगी !!



मंत्र में बड़ी श्रध्दा थी किन्तु प्रक्टिकल भी उतने ही थे । उन्होंने एक श्रध्धालु जो उनके पास आया था । उसके आंख में बड़ा कष्ट था तुरंत शस्त्रक्रिया की जरुर थी लेकिन वो बोला मेरी कुंडली में देखो क्या है। उसी टाइम कहा पहले डाक्टर के पास जाओ । ज्योतिष तो शक्यता ओ का विज्ञानं है । अँधा श्रध्दा वालो को डात्ते रहते थे। जप मंत्र से आत्मबल बढ़ता है वो जरुर कहते थे और इसको एक वज्ञानिक दृष्टिकोण से समजते थे। सतत मत्रबल की मोवेमेंट चलते थे।

मृत्यु




मृत्यु के बारे में उनके विचार श्पष्ट थे । उन्होंने मृत्यु को एक सहज अलविदा जैसा एक भाग कहा है । खुद को हॉस्पिटल में अपने मृत्यु का खेल आया था वहा एक चिठ्ठी लिख के रख दी थी। कहता मुझे बड़े प्यार से विदे देनी होगी ।३मार्च १९८६ को उनका देहांत हुआ था। उन्होंने संस्कृत की सेवा में बड़ा योगदान दिया था। वादोदारामे संस्कृत विद्वाद परिषद् में कार्यरत थे। उनको दी हुई शोकांजलि प्रस्तुत है।

सोमवार, 4 जनवरी 2010

रजवाडो में सेवा

पहले मिटटी के घर थे । बचुकाका का जो घर है उसके सामने एक नीम  का पेड़  रहा करता था । वहा भगवान दादा ध्यान किया करते थे । जिनकी मृत्यु  उनके १०१ की उम्र में हुई थी । वहा एक भोयरा था । इंट  के मकान  पहले गौरीशंकर काका का बना था। उसके बाद भवानीशंकर का और उसके बाद शिवशंकर  का बना था । भगवान दादा अंदाज़ इ १६९७ बड़े भक्त थे । यही अध्यात्म वृत्ति बच्चो में चली आई   होगी ।































સમાજ સેવા મેં જોડાયેલા રહ્યા.તે સમય ન છાપણું પણ છે.1945 માં જ્યોતિષ નું કામ ચલાવતા તેનું લેટર પેડ છે.જે bolundara ગામ માં હતું. આજે વડોદરા છે.આજે ગેંડા સર્કલ પાસે ઈશા હોસ્પિટલ સામે છે. મ 9376214921  રા.વ્યાસ 9898563630.ધારાબેન જોશી 9898280002 મુલાકાત આપે છે.






















उनकी सेवाए सतत रही है । राज्य कार्य में ,भारत की आज़ादी के काम में ,सनातन धर्म रक्षण के काम में ,यज्ञ यागादी में, ज्योतिष में ,संस्कृत प्रचार में कहा भी । यही गुणों के लेकर उनके छोटे भाई भवानीशंकर आखिर तक विश्व हिन्दू परिषद् की सेवामे जुटे रहे ! छोटे भाई परमानंदजी सरपंच पद पे रहे और कोंग्रेस के पहेले अधिवेशन में गए थे। शिवशंकर  उनके समय में इडर ,वडा गाम ,रणासण ,बोलुन्द्रा ,मोहनपुर जैसे रजवाडो में राज ज्योतिष का काम किया था। विनय सिंह जी  ने तो अपने पुत्रो भिखेंद्र सिह ,दिलीप सिह को शिक्षा प्राप्ती के लिए   उनके पास ही रख्खे थे !











सनातन मंडल में उस समय साबरकांठा का नाम महिकंथा था वहा उनके काम रहे है । महात्मा गाँधी को नडियाद में मिले थे। किन्तु गाँधी उनको मिलते जो कोई भी आदत को छोड़े !उनको कोई आदत ना थी किन्तु कभी भी चाय पि लेते थे । गाँधी के पास ये उन्होंने छोड़ा था ।विविध सम्प्रदायों को  मिलते थे  और उनके विषयो का  अभ्यास करते  रहते थे। क्योकि उनके  मोसल में  रामकबीर संप्रदाय के थे ।

















बोलुन्द्रा का इतिहास है ।

 इसीका भी वर्णन मिल सकता है किन्तु संक्शिप में उनका चित्र का पन्ना दिया हुआ है। बोलुन्द्रा में शिव मंदिर है । त्रम्बक्रम दादा एवं भैशंकर दादा बनारस से शिव लिंग लाये हुए थे । उन लोगो ने जुना आश्रम ,अभी के क्रुश्नास्रम में ,गाव के शिवालय में ,और अजय्भई के घर के आगे जो मंदिर है । वहा अज भी ये है। अजय भाई के घर के आगे जो शिव लिंग है वो भाई शंकर दादा का लाया हुआ था । गाव का शिवलिंग की जगह अज मंदिर बन गया है वहा हनुमान जी की मूर्ति एवं नवग्रह भी है ।






















जीवन जिम्मेदारिया










जैसे ही देश आजाद हुआ उनकी राज्ज्योतिश की जगह छूती । उन्हें आना पड़ा वड़ोदरा । उन्होंने ने जीवन में सांसारिक कष्ट सतत चालू रहा ! बचपन में पिता चल बसे । अपने चाचा पुरसोत्तम वो भी चल बसे । उनके पुत्रो भवानी,रमनलाल,(रमनलाल ने आगे चल कर बारिस्टर बने। और एक सामान्य भारतीय भी प्रेसिदंत का मुकाबला कर सकता है यह दुनिया को दिखने के लिए भारतीय प्रमुख की उम्मीद वारी की थी !)चंद्रकांत,अनंदा,मंगुबेन के साथ अपने भाई परमानन्द बहन मणिबेन सबके बड़े भाई होने से वैसे ही बापा का स्थान अहि गया था। उनकी प्रथम पत्नी तो शुरू में चल बसी जिनका नाम था गिरजा। जो कूद उसी समय में उनके साथ ज्योतिष शिख्ती थी ! दूसरी पत्नी रतिबा डो बच्ची को छोड़ के चल बसी इन्ही चीजों ने उनमे वैराग्य भावना कर दी थी। किन्तु कुदरत को कुछ और मंजूर था तो तीसरी शादी करनी पड़ी क्यों की माँ की बड़ी इच्छा थी !उनका नाम है मंगला गौरी !



वड़ोदरा में माडवी के पास आये । उस समय के संस्कृत विद्यालय ऍम अस युनिवेर्सिटी के प्रिंसिपल श्री हरी प्रसाद मेहता ने उनके कार्यालय देव ज्योतिशालय का ७द्घतन किया था। आज तो मांडवी बड़ा बस्ती वाला बन गया है ।



उनके संतान मुक्ता ,रमा ,जीतेन्द्र, राजेंद्र,निरंजना ,ज्योति ,शर्मिष्ठा ,किरीट कुमार आज भी अपने कार्यो में व्यस्त है ।


किरीट भाई की जनोई के समय का फोटो यहाँ रख्खा है .

उनके जीवन से एक बात रहती है कौटुम्बिक जिम्मेदारिया इन्सान की बाते खुलके बहर आने में समय ले लेती है










रविवार, 3 जनवरी 2010

देव ज्योतिषालय वड़ोदरा में





जगन्नाथ शास्त्री ,भाई परमानंद,भवानीशंकर,हरिशंकर ,भानाभाई भानुप्रसाद, भाई शंकर  ,रणछोड़ काका इन सबको साथ  लेकर  यज्ञ यागादी कार्यो में खूब काम किया। कई देव प्रतिष्ठा बड़े यज्ञ भी किये ।

चाचा पुरषोत्तम









कभी कभी हम देखते है की इन्सान कुछ कामो से फंसा रहता है। बचपनमे पिता गवाए। उनके बरोबरी दोस्त थे चाचा परसोत्तम वो भी चल बसे। उनके संतान अपने भाई बहन सब मिलके पूरी जिम्मेदारी खुद पर रही । और कह गए बापा। खुद की भी कहानी में पहली पत्नी चल बसी विवाह्के शरुमे ! दूसरी डो बच्चे छोड़ के चल बसी और तीसरी से संसार चला तो बच्चो की संख्या बढ़ी। उसीके दौरान देशा का आजाद होना और खुदका सनातन मंडल में सेवा कार्यमे लगा रहना यह सब चला जिसमे जिम्मेदारिया आर्थिक उल्जने यह सब बना रहा ! अपने  दादा  के नाम देवशंकर ज्योतिषज्ञ  के नाम से बनाया था देव ज्योतिषालय  ! जिसका बेंगोली प्रोनॉस से देओ  होता था इसीलिए इंग्लिश में DEOJYOTISHALAYA किया !!महात्मा गाँधी को मिले नडियाद में ,वहा उन्होंने चाय पीना छोड़ दिया। क्योकि गाँधी कुछ भी व्यसन छोडो तो हो बात करते थे। राजज्योतिषी होने से बड़ी अच्छी स्तिति थी फिरभी देश आजाद हुआ तो ना रहा राज ज्योतिष का पद भी और छोडके आये  वड़ोदरा १९४९ में !यहाँ दिया है उस समय का कुछ पन्ना !
आज भी उनके पुत्र राजेन्द्रप्रसाद व्यास  अवं  पौत्री  जोषी  धारा  वास्तु  एक्स्पर्ट इसी सेवामे व्यस्त है !! पौत्र राकेश कुमार रत्नो  अवं ज्वेलरी   में व्यस्त है !!





















गधा है वो !!!







भाई शंकर उपाध्याय  शिरस्तेदार इडर  में थे। वो  शिव शंकर  के ससुर थे।ये भी उस ज़माने  में शिरस्ते
दार  थे।  उनको  भी ज्योतिष  विषय  में रस था।  दावड़
में  कार्यालय  किया था !!



मंगलाबेन  उनकी पत्नी का नाम।





बोलुन्द्रा में उतने पुराने समय में अपने भाई को विदेश भेजने का साहस  किया था । उस भाई काना था रमण लाल जो बारिस्टर थे। एवं उन्होंने भारत के राष्ट्रपति की उम्मीदवारी श्री वि वि गिरी के सामने की थी।











ज्योतिषशास्त्र एवं कर्मकांड के ज्ञान के कारण  वड़ोदरा में  देश आजाद होने के पश्चात् देव ज्योतिषालय को लाना पड़ा था।
शेयर  बाज़ार में व्यर्थ सहसोसे उन्हों ने देखा की शयेर  में लालच से इन्सान इसी  खिंच जाता है। उनको यह बात ठीक ना लगी और इसकी पुकार अंतर से निकली जो उन्हेंने अपने शब्दोमे लिख दिया यह रास्ता ठीक नहीं है !! गधा है वो !!!