शनिवार, 9 नवंबर 2013

उनके पाव न जले !!

शिवशंकर  कि माता का नाम था रूक्ष्मणि !!लेकिन हैम सब घरडा  बा कहते थे।  वो उम्र ८० के करीब चल बसे थे।  मरते समय गर्मी के दिन थे  . गांव  में घुल रहना सामान्य बात थी।  उन दिनों में सभी भाई वह उपस्थित  थे  .  मृत्यु के अगले दिन सभी ने पूछा माँ तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है ? तो बा ने बताया " भगवन मुझे ब्रह्म मुहूर्त में मौत देना !! क्योकि गर्मी के दिनों में बच्चे स्मशान में आएंगे तो उनके पाव न जले !!!"
श्राद्ध नोंध


रविवार, 4 अगस्त 2013

कौटुम्बिक कार्य

कौटुम्बिक कार्य  ज्ञाति इन सबका बड़ा महत्व था उस ज़माने में।  लोग प्रसंगों में हाजर रहने में गौरव मानते थे।
मणि बेन का पुत्र भानुप्रसाद कुकरवाड़ा में ज्योतिष कर्मकांड करते थे । शिवशंकर व्यास की ज्येष्ठ पुत्री मुक्ता बहन,निरंजना एवं शर्मिष्ठा कुकरवाड़ा में विवाह किया था।
रमन काका  जनार्दनराय आनन्दी बहन व
પોતાના મસીયાઈ અને કૌટુંબિક ભાઈ ગૌરીશંકર મિત્ર સમ હતા



 તેમના અવસાનથી દુઃખી શિવશંકર વ્યાસ ના હસ્તે લખાયેલ રચના.
જ્યોતિબેન ના લગ્ન સમયે બાપા

बोलुंद्रा में जो जgदीशभाई के घर के आगे शिव लिंग है वो भैशंकर दादा ले आए थे।जो लक्ष्मीशंकर को दत्तक गए थे।उनका जन्म शकाब्द 1803चैत्र कृष्ण 6 बुध बार को हुआ था ।उनकी जन्म कुंडली ।









शनिवार, 3 अगस्त 2013

भूमा विद्या का लगाव था शिवशंकर को।

भूमा विद्या का लगाव था शिवशंकर को।  संसार में बिलकुल संसारी की तरह रहेना किन्तु बुध्धि को जोड़े रखना  भूमा के ज्ञान से।
वो बार बार यही कहते रहते थे मैंने इस जीवन में तिन भाग  देखे है।  अगर मर जाऊ तो तो मौत ऐसी हो।  इस प्रकार दैहिक दिमाग दोनों पर १० दिन कष्ट से गुजरे और आखिर दिन ऐसे हुए के सबसे बात की प्रभु भजन किये और अपने की हाजरी में सबको शुभाशीष देते हुए देह त्याग किया।  यह भूमा सिध्धि जिसको समज ए वो समज शके।
भूमा और अल्प !!
उन्होंने  त्रिकेम तत्व विलास नमक ग्रन्थ में प्रस्तावना लिखी है !
अपने भजन भी लिखे है । उसमे सेसे एक भजन कि पंक्ति यह है !!
गुरु के अंतर्बाह्य कि कल्पना अद्भुत थी !
मुझे उनके अंत काल के दिन गुरु के प्रति स्मरण भावना देख आश्चर्य हुआ !!  पाटण आश्रम  में त्रिकम लालजी की बाातेे । यही उभर आया था !!
कहा रास्ता है ?
उनका आनंद मंगल व्यापे  घटमा एक ऊंचा भजन है !!

પાટણ આશ્રમ માં ધ્યાન નો રસ અદભુત હતો


बस जय जय भूमा












शनिवार, 13 जुलाई 2013

प्रभु के नाम में समां जाता है

बोलुन्द्रा  एक समय में गुजरात का काशी कहलाता था ।  बोलुन्द्र की सुबह में चारो और छात्रो के मंत्र गूंजते थे ! हरेक अपने घर छात्रो को रखते थे और शिक्षा देते रहते थे !! यही शिक्षा की सेवा थी ।आज भी चल रही है !!बोलुन्द्र में पाठशाला आत्रेय जैमिनी व्यास  श्री कृष्णाश्रम   में चला रहे है ! अवं  राजेन्द्रप्रसाद शिवशंकर कौशाम्भ  सेवा के नाम से  शिक्षण के विषय में विकास कर रहे है !! बोलुन्द्रा  स्कुल में परमानन्द का डोनेशन है !! शिक्षा संस्कृति का विकास यह मंत्र आज भी चल रहा है !!
मुख्य आमदनी कर्मकांड पूजा से है अत: इन्ही मार्ग से यजमानो की सेवा होती रहती है !! आज भी इसी लिए सभी बोलुन्द्रा पंडित और उनके भांजे बहने स्नेही सम्बन्धी से एक ही आवाज़ है लव बोलुन्द्रा !!
शिवशंकरजी का एक ही आवाज़ था सभी प्रभु के नाम में समा जाता है !!उनकी डायरी का  सन 19२9 का पन्ना भी यही बोलता है !! आज भी  बापजी की आवाज़ आज भी गूंजती है तू ही तुही राम भज मन राम  तज मन काम बोल जीवड़ा राम !! 1 9 2 9
यही धारा  बहती ही रहेंगी !!
कर्म कांड का मूल कल्प शास्त्र से है ।शिक्षा कल्प व्याकरण ज्योतिष निरुक्त और छंद । ये छह वेदांग है । कई लोग कर्मकांड के अर्धज्ञानी पंडित से सही समझ नही पाते है ।और ये आध्यात्मिक देह की आधिभौतिक प्रक्रिया के पीछे रही आधिदैविक स्थिति जान कैसे पा सकते है ।कभी कभी लगता है जो अंधश्रद्धालु लोग दिखते है उन्हों ने अनजाने में ही हीरा सम्हाल रख्खा है । पूरे बोलुँद्रा के पंडित में एक दो को बाद करते ज्यादातर ने कर्मकांड को धंधा समजा। युक्ति और ज्ञान में फर्क है । युक्ति को श्रेष्ठ मानना मन निर्बलता का लक्षण है । कुछ लोगो ने खुद ने इसमें विश्वास न रख कर केवल वितंडावाद किया । अपने बच्चों को खुद अलग विषयो में ले गए । यह दुखद है ।