शनिवार, 3 अगस्त 2013

भूमा विद्या का लगाव था शिवशंकर को।

भूमा विद्या का लगाव था शिवशंकर को।  संसार में बिलकुल संसारी की तरह रहेना किन्तु बुध्धि को जोड़े रखना  भूमा के ज्ञान से।
वो बार बार यही कहते रहते थे मैंने इस जीवन में तिन भाग  देखे है।  अगर मर जाऊ तो तो मौत ऐसी हो।  इस प्रकार दैहिक दिमाग दोनों पर १० दिन कष्ट से गुजरे और आखिर दिन ऐसे हुए के सबसे बात की प्रभु भजन किये और अपने की हाजरी में सबको शुभाशीष देते हुए देह त्याग किया।  यह भूमा सिध्धि जिसको समज ए वो समज शके।
भूमा और अल्प !!
उन्होंने  त्रिकेम तत्व विलास नमक ग्रन्थ में प्रस्तावना लिखी है !
अपने भजन भी लिखे है । उसमे सेसे एक भजन कि पंक्ति यह है !!
गुरु के अंतर्बाह्य कि कल्पना अद्भुत थी !
मुझे उनके अंत काल के दिन गुरु के प्रति स्मरण भावना देख आश्चर्य हुआ !!  पाटण आश्रम  में त्रिकम लालजी की बाातेे । यही उभर आया था !!
कहा रास्ता है ?
उनका आनंद मंगल व्यापे  घटमा एक ऊंचा भजन है !!

પાટણ આશ્રમ માં ધ્યાન નો રસ અદભુત હતો


बस जय जय भूमा












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