शनिवार, 13 जुलाई 2013

प्रभु के नाम में समां जाता है

बोलुन्द्रा  एक समय में गुजरात का काशी कहलाता था ।  बोलुन्द्र की सुबह में चारो और छात्रो के मंत्र गूंजते थे ! हरेक अपने घर छात्रो को रखते थे और शिक्षा देते रहते थे !! यही शिक्षा की सेवा थी ।आज भी चल रही है !!बोलुन्द्र में पाठशाला आत्रेय जैमिनी व्यास  श्री कृष्णाश्रम   में चला रहे है ! अवं  राजेन्द्रप्रसाद शिवशंकर कौशाम्भ  सेवा के नाम से  शिक्षण के विषय में विकास कर रहे है !! बोलुन्द्रा  स्कुल में परमानन्द का डोनेशन है !! शिक्षा संस्कृति का विकास यह मंत्र आज भी चल रहा है !!
मुख्य आमदनी कर्मकांड पूजा से है अत: इन्ही मार्ग से यजमानो की सेवा होती रहती है !! आज भी इसी लिए सभी बोलुन्द्रा पंडित और उनके भांजे बहने स्नेही सम्बन्धी से एक ही आवाज़ है लव बोलुन्द्रा !!
शिवशंकरजी का एक ही आवाज़ था सभी प्रभु के नाम में समा जाता है !!उनकी डायरी का  सन 19२9 का पन्ना भी यही बोलता है !! आज भी  बापजी की आवाज़ आज भी गूंजती है तू ही तुही राम भज मन राम  तज मन काम बोल जीवड़ा राम !! 1 9 2 9
यही धारा  बहती ही रहेंगी !!
कर्म कांड का मूल कल्प शास्त्र से है ।शिक्षा कल्प व्याकरण ज्योतिष निरुक्त और छंद । ये छह वेदांग है । कई लोग कर्मकांड के अर्धज्ञानी पंडित से सही समझ नही पाते है ।और ये आध्यात्मिक देह की आधिभौतिक प्रक्रिया के पीछे रही आधिदैविक स्थिति जान कैसे पा सकते है ।कभी कभी लगता है जो अंधश्रद्धालु लोग दिखते है उन्हों ने अनजाने में ही हीरा सम्हाल रख्खा है । पूरे बोलुँद्रा के पंडित में एक दो को बाद करते ज्यादातर ने कर्मकांड को धंधा समजा। युक्ति और ज्ञान में फर्क है । युक्ति को श्रेष्ठ मानना मन निर्बलता का लक्षण है । कुछ लोगो ने खुद ने इसमें विश्वास न रख कर केवल वितंडावाद किया । अपने बच्चों को खुद अलग विषयो में ले गए । यह दुखद है ।

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