वड़ोदरा में उनको आना हुआ 1949 देश की आज़ादी हुई उसके करीब से। राज ज्योतिष थे उत्तर गुजरात के। अब यहाँ पंडितो में उन्होंने संस्कृत विद्वत सभा में कार्य में रत हुए । साथ साथ ज्योतिष की सेवा रही । उनके साथ महाशंकर भाई हरिशंकर जी उनके भाई परमानन्द भवानी शंकर सब ने मिलके शुरू किया था व्यास एंड कंपनी नामका व्यापर जिसमे दवाई यो एवं कागज खाने की चीजों का व्यापर भी था। किन्तु यह थोड़े साल चला ! अध्यात्मिक कार्य तो था ही। बोलुन्द्र में किये हुए अतिरुद्र में जो पूजा किया हुआ शिव लिंग था वह लेके आ ये थे। शरु में ભૂતડી ઝાંપા के पास देव ज्योतिशालय था । फिर वहा से शामल बेचार की पोल में । उनका नाम सुनके उनके वहा राज्कपोर और नर्गिस भी ज्योतिष दिखाने ए थे। यही सम्बन्ध से वो चेम्बूर भी पृथ्वीराज के बुलवाने पर गए थे। और उनका फोरकास्टिंग सही हुआ था । इसी बातो से उनकी विशिष्टता और बढ़ी थी और भ्रुगुसम्हिता का अधर ले कर पुर जिंदगी का फल लिखने की उनकी पद्धति ने बड़ा नाम बनाया था । करीबी १९६५ देव ज्योतिशालय को लेके ए थे बा रा न पूरा में ! फिर वहा से हरनी रोड पर !यही उनकी यात्रा ज्योतिष कार्यालय की रही ! यही काम उनके पुत्र राजेन्द्रप्रसाद सम्हाल रहे है। उनके पुत्र किरीट भा इ भी कर्मकांड एवं ज्योतिष के काम में है । उनकी रत्नपरीक्षा के गुण ने पुत्र राकेश को जेमोलोजी में खीचा है इस तरह यह सेवा जरी रही है । आज युनिवेर्सिटी ग्रांट कमीशन का ७३ नंबर का विषय ज्योतिष बना रहा है ।
ज्योतिष के साथ कर्मकांड पूजा मै कई बड़े काम हुए थे.जिनमे पशाभई ट्रेक्टर का प्रारंभ पूजा उन्होंने की थी जो आज हिंदुस्तान ट्रक्टर जैसी कंपनी है ।
यही था उनका ज्योतिष के प्रति दृष्टिकोण !!
देवज्योतिषालय को वड़ोदरा में लाये तब मिले पहले संस्कृत विद्यालय के प्रिंसिपल हरिप्रसाद महेता . जिनको आगे चलके राष्ट्रपति से अवोर्ड मिला था उत्तम शिक्षक का !! उन्हीके हाथो से उद्घाटन हुआ वड़ोदरा में | यहाँ एक तस्वीर है जिसमे १९७१ में फॅमिली फोटो है |
मुझे बिलकुल याद है उनमे श्रध्धा रखने वाले बहोत थे !! जो उनको गुरु मानते थे। लेकिन गुरु ગાદી जैसा ન किया उन्होंने। उनके आरोग्य के प्रश्न के कारण उनके एक शिष्य लक्मीनाथ तिवारीजी ने हम बच्चो को बिठा कर उनके बदल भगवत सप्ताह किया था !यही उनके प्रति सद्भावनका प्रतिक है !!
मुझे बिलकुल याद है उनमे श्रध्धा रखने वाले बहोत थे !! जो उनको गुरु मानते थे। लेकिन गुरु ગાદી जैसा ન किया उन्होंने। उनके आरोग्य के प्रश्न के कारण उनके एक शिष्य लक्मीनाथ तिवारीजी ने हम बच्चो को बिठा कर उनके बदल भगवत सप्ताह किया था !यही उनके प्रति सद्भावनका प्रतिक है !!
तीन मज़ले का मकान किराये पे था। यहाँ से बरान पूरा और उसके बाद हरणी रोड पर कार्यालय लाया गया था। जो आज राजेन्द्रप्रसाद व्यास अवं उनकी पुत्री जोषि धारा चला रहे है ! આજે કાર્યાલય ગેંડા સર્કલ પાસે ,ટ્રાયી કલર હોસ્પિટલ પાસે છે.
संस्कृत विद्वत सभा अवं पंडितो में बड़ा मान था . कर्मकांड विषय में उनकी मास्टरी थी !
Manglaben જયશ્રી हंसा ભાવના बहु के साथ
વડોદરામાં આવ્યા ત્યારે દેશના ભાગલા થયેલા તેની તેમના પર ઘણી અસર હતી .તેથી સિંધી ભાઈ બહેનો પાસે થી ફી ન હતા લેતા. તેનું તેમને બોર્ડ ચિત્રવેલું.અમે નિરઆશ્રિત ભાઈ બહેનો પાસેથી ફી લેતા નથી.ઘણા સમય સુધી આ બોર્ડ હતું.જે તેમના એક અંગત ગ્રાહક પરમાનંદ લાખની એ કહ્યું કે હવે સિંધી ઓ સુખી છે હવે તો દક્ષિણા લો.એમ કહી બોર્ડ ખસેડી દીધેલ
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