पेन्सिल में बनाया है यह उनका अध्यात्मिक चित्र है ।
समय की कठिनाई यो ने उन्हें पत्नियों का मरना एवं संतान पिता चाचा का मृत्यु इन सब ने सतत सांसारिक जिम्मेदारियों में डाला ही है । इसी कारण राज ज्योतिष पद छोड़ के वडोदरा आना हुआ । देवशंकर दादा का नम से देव ज्योतिषालय संस्था बनाई जो आज भी जिवंत है http://www.deojyotishalaya.com/ ।
यही तो उनकी सातत्यता है । उन्होंने भूमा विद्या का जिक्र किया था। पाटण में त्रिकम लालजी महाराज से उन्होंने यह विद्या में रस लेना शुरू किया था । इस बात का कथन त्रिकम तत्त्व विलास के ग्रन्थ के प्रारम्भ में है । और यह बात जीवन के अन्तिम समय इसी भजन को सुनाने में निकली थी !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें